Jan 22, 2010

Main Bazaar Mein

रोज़ लगते हैं ठेले,
होता हैं व्यापार मेरे आगे.
रोज़ मुट्ठीभर ढेले,
बदलते हैं हथेलिया मेरे आगे |

अर्थनीति की दुनिया हैं,
मोल का पता नहीं, सबपे लगे हुए हैं कीमत के धागे.
तोल मोल और बोलियों की चीखें,
मूषक के पीछे बिल्ली, तो श्वान बिल्लीके पीछे भागे |

चमड़ी और परिश्रम,
यह पदार्थ प्रचलित हैं ज्यादा सबसे.
दिमाग, आँखे और जबान,
इनका बाज़ार लगता हैं अनोखा अलग से |

सौदों के लम्बे सिलसिले,
थक गया हूँ इनसे, बताऊ में किसको जाके?
क्यों नहीं रुकता यह रेला ?
यदि जा पाता तो चला जाता, कहीं दूर यहाँ से |

मेरी नींद खुल चुकी हैं,
टूट चूका हैं सपना, फिर भी आँखे बंध हैं तब से.
टूटी हुई हर चीज़ चुभती हैं,
पर अब नींद नहीं आती, और कोई नहीं जो धीमी लोरी गा दे |

मुझे बिकने का मन नहीं हैं ,
लेकिन पता हैं, बिकना तो मुझे भी पड़ेगा.
आखिर दुनिया ही ऐसी हैं,
यहाँ जीने की कीमत चुकानी पड़ती हैं |