Jan 14, 2010

अविदित (Unknown)

सोया हुआ था कभी वह 
सितारों की दुनिया में.
वह कहा जानता था की 
हैं वह भी इस लोक का ही 
वह बुझा बुझा हुआ सा,
खोया खोया सा कहीं.
था वह खफा या फिर बेवफा खुदसे 
क्या पता ?
यह तो शायद वही जाने खुदसे.
एक दिन रौशनी निकलने पर.
पंछीयो की किलबिलाहट सुनकर,
वह निकल पड़ा 
अपना आशियाना ढूँढने. 
यहाँ वहा कहीं नहीं मिला.
ढूंढता रहा,
लेकिन फिर थका हारा
वह वापसी करने लगा. 
वही उसे मिला अपना बसेरा,
जहा कोई अपना मन मारता नहीं.
जहा कोई खुद से खफा होता नहीं. 
- प्राची